कवि मुकेश गौतम
हम बेटी के आभारी हैं,
बेटी ही भावी नारी है।
सम्मान में हर एक बेटी के,
ये चंद पंक्तियाँ जारी है।।
हर आंगन महके बेटी से,
घर बगियाँ चहके बेटी से।
बेटी से ही रोशन जग है,
घर का घर होना बेटी से।।
घर तीज त्योहार है बेटी से,
हर व्रत उपवास है बेटी से।
बेटी है तुलसी का पौधा,
इक नयी तलाश है बेटी से।।
रिश्तों की बनावट बेटी से,
हर घर की सजावट बेटी से।
बेटी है कसावट अपनों की,
सपनों की लिखावट बेटी से।।
बेटी संस्कार की पोषक हैं,
और मर्यादा की रेखा है।
उस घर का तो उत्थान कहाँ,
जहाँ बेटी का अनदेखा है।।
इतिहास बनी पन्ना बेटी,
खुद को पन्नों में लिखा गयी।
स्वामिभक्ति क्या होती है,
सारे ही जग को दिखा गयी।।
है लक्ष्मी सरस्वती बेटी,
दुर्गा का रूप बनी बेटी।
बेटी है रण में लक्ष्मीबाई,
हुयी अमर कल्पना है बेटी।।
कवयित्री महादेवी भी बेटी,
जिस पे हिन्दी को नाज रहा।
सुनिता का हौसला देखो तो,
कैसे आसमान को नाप रहा।।
-रचनाकार
कवि मुकेश गौतम
डपटा,बूंदी (राज)