कुछ तो लगते हो

कीर्ति चौरसिया

कभी तुम पास लगते हो,

कभी तुम दूर लगते हो 

चाहत इतनी है, हम 

बताने में भी डरते हैं ,!!!!

कितने दूर होकर भी ,

दिल के पास ही लगते हो 

खयालों में ही सही 

बात ना हो तो बेजान लगते हैं!!!


तेरी एक मुस्कुराहट पे 

सौ सौ बार मर जाऊं ,

तूफानों की इन लहरों में 

तुम साहिल से लगते हो !!!!


कभी कहना ,कभी सुनना 

कभी कहते चले जाना 

प्रेम के उन लम्हों की 

इक किताब लगते हो !!!!


जरा सी इन हंसी लम्हों की

एक दुनिया है अपनी भी ,

इस दुनिया की मैं रानी

तुम सरताज लगते हो!!!


बेखुदी में अनगिनत गीत गाते हैं

झंकार दिल की जब चाहे तुम्हें सुनते हैं,

संगीत के हर सुर से अनभिज्ञ हूं लेकिन,दिल से निकले मेरे सुर 

सिर्फ तुम पर ही सजते हैं !!!!


हूं अमर्यादित खोई तुम में ही कहीं

जाने क्यूं खयाल दूरी आ ही जाता है,

क्या सच है ,क्या फ़साना ,

कुछ समझ नहीं आता 

सितारों से भरी महफिल में

तुम चांद लगते हो !!!


यही एक बात है दिल में 

जो रह रह के आती है,

थोड़े से ही सही पर

मेरे कुछ तो लगते हो !!!!


   कीर्ति चौरसिया

       जबलपुर ( मध्य प्रदेश)

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