स्थान परिवर्तन की सलाह पर विनय, पत्नी के साथ सुन्दर पहाड़ी स्थान पर गया । परन्तु अपरिचित स्थान की नीरवता ने उसकी बेचैनी को और बढ़ा दिया । पत्नी जिद कर उसे, बूढ़े माता-पिता के पास, इस छोटे, अविकसित कस्बे के दो कमरों के मकान में ले आई थी ।
बरसों बाद बेटा-बहू को अपने पास पाकर माँ-बाप प्रसन्न थे। किन्तु बेटे की बीमारी से चिन्तित वृद्धा सास ने बहू को अलग ले जा कर पूछा, ‘‘बहू, उसकी तबीयत इतनी खराब है, इतना परेशान है । उसे यहाँ क्यों ले आई हो ? उसे अच्छी आबोहवा में ले जाना था ।’’
‘‘नहीं, माँ जी । महानगर की भागमभाग जिन्दगी और गला काट स्पर्धा के बीच, नेह के नाते जाने कहां खो गये हैं । आपके बेटे को बड़े डाक्टर और खुली, स्वस्थ हवा से ज्यादा इन प्यार के रिश्तों की ऊष्मा की आवश्यकता है । यही उन्हें जीवन की ऊर्जा देगी ।’’ विश्वास उसके स्वर से छलक रहा था ।
कुछ ही घंटों बाद बाहर के कमरे में विनय, बचपन के साथियों के साथ बैठा ठहाके लगा रहा था और माता-पिता कृतज्ञ नजरों से बहू को देख रहे थे ।
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बेटे
‘‘क्या सोच रहे हो जी ?’’
‘‘सोच रहा था कि मैं कितना गलत समझता रहा हूं । जानती हो मैं हमेशा सोचता था कि अपने बच्चों को जो प्यार और संस्कार हम देते हैं, वही हमारे जीवन रूपी सीढ़ी के मजबूत ईंट-गारा होते हैं । और बच्चे सीढ़ी के किनारे बने सहारा देने वाली रेलिंग होते हैं ।’’
‘‘........................’’ मूक नजरों से वृद्धा ने पति की ओर सहानुभूति से देखा ।
‘‘अब जीवन की सीढ़ी के अन्तिम छोर पर पहुंच कर जान सका हूं कि बच्चे सीढ़ी के किनारे बनी सहारा देने वाली रेलिंग नहीं बल्कि नदी के दोनों ओर के वह खेत होते हैं जो नदी से जल तो लेते हैं किन्तु ऊॅंचे-ऊॅंचे बांध बना कर नदी को अपने पास आने से रोक देते हैं ।’’
सजल नयनों के साथ वृद्धा ने सहमति में सिर हिलाया ।
नीलम राकेश
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