ग़ज़ल



सुषमा दीक्षित शुक्ला

ऐ!जिंदगी तेरे लिए मैंने बहुत से दुःख सिंये।

ऐ! वन्दगी  तेरे लिए आँख ने आँसू  पिये  ।


बे मुरब्बत जिंदगी तू रूठती मुझसे रही ।

बेरहम ये जख़्म सारे दिन ब दिन तूने दिये ।


ऐ मोहब्बत बन चुकी तू अब  मेरी दीवनगी।

इश्क़ की करके इबादत काम पूरे हैं  किये ।


दिल तड़पता रात दिन रूह है जोगन बनी ।

दर्द सारे आदतों में अब सनम शामिल किये ।


मोहब्बत में नही है फ़र्क जीने और मरने का ।

बेखता ये सज़ा पाकर जिंदगी तुझको जिये ।


हजारों ख्वाहिशें हो चुकीं हैं अब तो  दफ़न ।

याद में तेरी सनम  जहरे  समंदर पी  लिए ।


शमा बनकर अब तलक मैं,पिघल ढलती रही ।

फ़क़त रात ओ दिन जले प्यार से दिल के दिये ।

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