स्नेहलता पाण्डेय "स्नेहिल"
मुँह पर मधु मुसकान बिखेरे,
आँखों से झरती स्मित रेखा।
होंठों से निकले मधुर वाणी
आवरण श्वेत धवल देखा।
कितने सारे हैं नाम इनके
सिस्टर,नर्स,परिचारिका।
कर्म के प्रति सजग सदा।
आलस्य इन्हें छू तक न सका।
जादू है इनकी आँखों में,
ज़ादू है इनकी बातों में।
स्पर्श में इनके ज़ादू है,
ज़ादू है इनके भावों में।
करती हैं सेवा तन-मन से,
पूर्ण समर्पित हो रोगी की।
निराशा दूर भगाती मन से।
आत्मबल बढ़ाती हैं प्रिय सी।
जब रोगी ठीक होकर,
घर अपने जाने लगता है।
वे उन्हें विदा ऎसे करतीं,
जैसे कोई हो परम स्नेही।
इनकी निःस्वार्थ सेवाभाव का,
कितना भी हम गुणगान करें।
सहनशीलता की इनकी,
इनकी कर्मठता को नमन करें।
प्रथम जादूगरनी थीं अद्भुत,
नर्स फ्लोरेंस नाइटिंगेल।
थीं बनीं "लेडी विथ द लैंप,"
अपनी सेवा भावना से।
इनकी सेवा और त्याग के,
आगे सब नतमस्तक होते हैं।
आज विश्व नर्स दिवस पर,
श्रद्धा से शीश नवाते हैं।
स्नेहलता पाण्डेय "स्नेहिल"✍️✍️
नई दिल्ली