मणि बेन द्विवेदी
ख़ुद जग कर में तुम्हे सुलाती है।
भूखे रह कर मां तुम्हे खिलाती है।
तुम्हारा उतरा चेहरा देख कर
मां सब कुछ समझ जाती है
बेशक अनपढ़ होती है मां
पर सुख दुख सब कुछ
पढ़ जाती है।
सारी सारी रात जग कर खुद
तुम्हे सुलाती है ।
तुम्हारी खुशी के लिए मां चांद को भी
आंगन में बुलाती है।
क्या मजाल लग जाए बद्ददुआ किसी की
मां झट काजल का टीका लगाती है।
चेहरा देख कर मां सब समझ जाती है।
सूखे होठ देख कर
भूख का अंदाज़ा लगा लेती है मां
आंखो के आंसू पढ़ना जानती है मां
सुख दुख सब बांच लेती है मां
रात देर तलक तुम्हारे इंतज़ार में भूखी बैठी रहती है
तुम्हारे पसंद का खाना बना के राह देखती रहती है
विलम्ब होने पर बार बार बाहर झांक आती है मां
वो सुख दुख सब पढ़ना जानती है।
एक झलक देख कर सब जान जाती है मां।
तुम्हारी झिड़की सुन कर मौन हो जाती है मां
बस छलक उठती है आंखो के कोर से
दो बूंद एहसास के आंसू
तुम कभी ना बांच पाओगे मां के एहसास को
मां के दुख सुख को
तुम कभी ना समझ पाओगे
उसके आंसू तुम कभी ना पढ़ पाओगे।
मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी उत्तर प्रदेश