अंखियों में कान्हा बसें
दूजा न कोई समाए
धागा हो तो टूट भी जाए
पर प्रीत न तोड़ी जाए ।
राधा कहे सखियन से
मैं कृष्ण में, कृष्ण मुझमें समाएं
नहीं राधा कृष्ण के बिना
कृष्ण नहीं राधा बिना ।
बस प्रेम है कान्हामय
और रहा राधामय
राधे कृष्ण गाएं प्रेमगीत
है यही मधुर मधुर प्रेम रीत ।।
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सुनीता जौहरी
वाराणसी उत्तर प्रदेश