ना आंधी ना तूफानों में,
ना सागर के उफानों में,
ना पर्वत और चट्टानों में,
ना नदियों और किनारों में,
ना बागों और बागानों में,
ना हीरों के खादानों में,
ना गलियों और बाजारों में,
ना मंदिर और मजारों में,
ना लाखों और हजारों में,
ना सोने के दीवारों में,
ना धरती और पातालों में,
ना घारी और घटालो में,
ना झरना और फूहारों में,
ना सूरज, चांद, सितारों में,
ना तबला,ढोलक,तासों में,
ना सरगम के सांसों में,
ना लड्डू और बतासों में,
ना बैशाख के प्यासों में,
ना हीत मीत ना दोस्त यार,
ना अपने खासमखासों में,
जैसे गूलर का फूल नहीं,
मिलता लाख प्रयत्नों में,।
वो सुख नहीं मिल पाएगा,
जो मिले मातृ के चरणों में ।।
✍️ ऋषि तिवारी "ज्योति"
चकरी, दरौली, सिवान (बिहार)