बेरहम भाग्य की मार,


 परिंदा, पल-पल जीता मरता था

, पर्वत जैसा बोझ जीवन का,

 सर पे ढोता फिरता था, 

तभीी जीवन की खिड़की से, 

एक झरोका नजर आया,

 देख झरोखा दुखी परिंदा,

 मन ही मन मुस्काया,

 खिड़की बोली ऐ परिंदे, 

मैंं तेरा दुख जानती हूं,

 मेरा झरोखा है आस तेरी, 

 मैं भी ऐसा मानती हूं, 

खिड़की की सुन झूमा परिंदा,

 सुनहरा ख्वाब देख डाला, 

 पर हाय री किस्मत, 

ऐन वक्त पर, 

खिड़कीी ने झरोखा बंद कर डाला, 

 हुआ बंद झरोखा,

 मझधार परिंदा, 

चारोंं ओर निहारता है,

 जिंदगी की जीती बाजी,

 बार-बार हारता है, 

ऊपरर वाले बता मुझे,

 क्या मेरी ही किस्मत सोई हुई है ❓

 इस  भरी दुनिया में, 

मेराा ही, कोई नहीं है❓🙏🏻

पवन भारतीय

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