जीएंगे हम जीतेंगे हम

 


भले हीं धरा पर काल भयंकर है,

पर हम भी तो यहां के धुरंधर हैं,

इस काल को भी हराएँगे हम,

जीवन पुष्प फिर से खिलाएँगे हम,

इसलिए जिएँगे हम, जितेंगे हम,

तभी जिएँगे हम, जब जितेंगे हम।


भले ही हमारा शत्रु अदृश्य है,

पलपल बदलता परिदृश्य है,

मग़र शब्दभेदी भी तो हैं हम,

और रणभेदी भी तो हैं हम,

इसलिए जिएँगे हम, जितेंगे हम,

तभी जीएंगे हम, जब जितेंगे हम।


माना ये लंबी रात अमावस्या की है,

दुष्टशत्रु ने एक कठिन समस्या दी है,

पर सहस्त्रों सूर्य का जोत जलाएंगे हम,

और एक नया सबेरा भी लाएंगे हम,

इसीलिए जीएंगे हम जीतेंगे हम,

तभी जीएंगे हम, जब जितेंगे हम।


माना अभी सारा संसार सुना पड़ा है,

और मानव भी मानव से दूर खड़ा है,

पर इस बाग में चहचहाहट लाएंगे हम,

एकबार फिर अपनों के गले लग जाएंगे हम,

इसीलिए जीएंगे हम जितेंगे हम,

तभी जीएंगे हम, जब जितेंगे हम।


माना हम में से कुछ अभिमन्यु थें,

पर भेदें भी तो वही चक्रव्यूह थें,

देकर उनको श्रद्धांजलि फिर से,

यहां विजय बिगुल बजाएँगे हम,

इसीलिए जीएंगे हम जितेंगे हम,

तभी जीएंगे हम, जब जितेंगे हम।


माना यहां चारों हैं तरफ अँधेरा है,

मानव साँसों को तम ने आ घेरा है,

पर आदि से प्रचंड शत्रुघात्री हैं हम,

और भयंकर कालरात्रि हैं हम,

इसीलिए जीएंगे हम जितेंगे हम,

तभी जीएंगे हम, जब जितेंगे हम।


जो लड़कर चले गएं वो वीर थें,

सदा जग में मार्गप्रशस्ती कहलाएंगे,

मार्ग दिखा लड़ना सीखा गएं वो,

अब रणबाकुरें कहलाएंगे हम,

इसीलिए जीएंगे हम जितेंगे हम,

तभी जीएंगे हम, जब जितेंगे हम।


आत्मसात करेंगे प्रकृति से शक्ति को,

अचल रखेंगे अपनी देव भक्ति को,

अपनी आत्मशक्ति उद्वेलित करेंगे हम,

स्वयं की ऊर्जा प्रज्ज्वलित करेंगे हम,

इसीलिए जीएंगे हम जितेंगे हम,

तभी जीएंगे हम, जब जितेंगे हम।


माना शमशान अभी हँसने लगा है,

और हृदय भी द्विखण्ड बंटने लगा है,

परंतु कंस और रावण वध किएं तो,

इस मरीचि शत्रु को भी मारेंगें हम,

इसीलिए जीएंगे हम जितेंगे हम,

तभी जीएंगे हम, जब जितेंगे हम।


इस मुश्किल से भी निकल जाएंगें,

अपने सामर्थ्य से ही विजय पाएँगे,

आत्मशक्ति का साथ न छोड़ेंगे हम,

इस छुपे हुए शत्रु को भी तोड़ेंगे हम,

इसीलिए जीएंगे हम जितेंगे हम,

तभी जीएंगे हम, जब जितेंगे हम।


माना प्राणवायु पे काल का पहरा है,

पर विपत्तिकाल भी कबतक ठहरा है,

यह दुर्दिन भी अब बस गुजर जाएगा,

और एक नव सुखद सबेरा पाएँगें हम,

इसीलिए जीएंगे हम जितेंगे हम,

तभी जीएंगे हम, जब जितेंगे हम।


माना की अभी महामारी प्रलयंकर है,

और चीत्कारता विशाल अम्बर है,

पर यहां जीवन के संतरी भी तो हैं हम,

और देव वैध धन्वंतरि भी तो हैं हम,

इसीलिए जीएंगे हम जितेंगे हम,

तभी जीएंगे हम, जब जितेंगे हम।


हम हार जाएँ ऐसा हो नहीं सकता,

शत्रु जीत जाए ऐसा होने न देंगें हम,

अब यहां काल को नियंत्रित करेंगें हम,

जीवन को फिर से जीवित करेंगें हम,

इसीलिए जीएंगे हम जितेंगे हम,

तभी जीएंगे हम, जब जितेंगे हम।


माना एक अल्प ठहराव सा आ गया है,

आज़ादी पे पाबन्दियों का पड़ाव आ गया है,

मगर समस्या पे व्रजपात करेंगें हम,

इस ठहराव से हीं शुरुआत करेंगे हम,

इसीलिए जीएंगे हम जितेंगे हम,

तभी जीएंगे हम, जब जितेंगे हम।


माना नाश हो रहा सांसों का मूर्धन्य है,

परन्तु हम मानव हैं, रचनाकार भी है,

विषमताओं पर विजय हमारी हीं होगी,

और फिर एकबार सृजनकार बनेंगें हम,

इसीलिए जीएंगे हम जितेंगे हम,

तभी जीएंगे हम, जब जितेंगे हम।


साथ दे एक दूसरे का हर पलक्षण,

और बांट लें एक दूसरे का हर गम,

आपस में जुड़ आत्मबल बने हम,

सहयोग, सहभागिता और संबल बने हम,

तभी जीएंगे हम, जब जितेंगे हम,

इसीलिए जीएंगे हम जितेंगे हम।

🙏🙏

ममता रानी सिन्हा

तोपा, रामगढ़ (झारखंड)

(स्वरचित मौलिक रचना)

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