डाॅ. अनीता शाही सिंह
तपती आँच में ख्वाहिशें नहीं जला करती
सहज स्त्रियां यूँ ही जटिल नहीं दिखा करती
बाँध लेती हैं आस की डोर से ख़ुद को
बंद मुट्ठी से आसमान नहीं लिखा करती
ढूँढ लेती हैं रास्ता वो बिखरे से रिश्तों में
खिचकर टूट जाए ऐसा नहीं राब्ता रखतीं
बिखर जाती हैं अक्सर ही काँच की तरह
पर वो पत्थरों सा दिल नहीं रखा करतीं
ईश्वर की ही नेमतें हैं ये आसमां-ओ-जमीं
सृष्टि स्त्री से बेहतरीन और नहीं रचा करतीं ।।
डाॅ. अनीता शाही सिंह
प्रयागराज