गीता पांडे 'अपराजिता '
मानव जब अज्ञानता के अंधकार में जल रहा था!
ज्ञान का संदेश ले इक दीप मां कोख में पल रहा था!
कपिलवस्तु लुंबिनी पावन भूमि अनुपम हुआ नजारा!
महामाया की कोख से जब जन्मा सुत सिद्धार्थ न्यारा!
वैशाख मास पूर्णिमा का यह दिन होता बड़ा खास है!
ज्ञान प्राप्ति का इस दिन बुद्ध को हुआ था अहसास है!
छोटी-छोटी बातों पर अपने अपनों से क्रुद्ध हुये!
सत्ता के लालच में आकर बड़े भयानक युद्ध हुए!
शाक्य वंश में जन्म लिया दुर्योधन गौतमी का प्यारा!
राज वैभव समझा नहि माया ठुकराया राज दुलारा!
वृद्ध अपाहिज दुखी देख मन विचलित हो जाता थ!
सब की पूरी सेवा करते कोई रोक न पाता था!
दुनिया के दुख से व्याकुल शांति खोज आत्मा शुद्ध किये !
कठिन तपस्या करके आए तब वह गौतम बुद्ध हुए!
दुख का कारण किये निवारण जनमानस की पीर हरे!
पवित्र आत्मा गौरव वाणी सुनकर स्वयं मन धीर धरे!
संकल्प दृढ़ विचार से जीवन को तपोभूमि बनाएं!
सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय की थे धुनी रमाये !
पीपल के नीचे बैठ किये कठिन तपस्या मूल ज्ञान पाये!
सदा सत्य बोलो जीवो पर दया करो बात यही बतलाये!
यशोधरा को बहुत दुख हुआ जब सिद्धार्थ से बने बुद्ध !
बेटे राहुल सन बनी तपस्विनी हरदम रही विशुद्ध!
बुद्धम शरणम गच्छामि धम्मम संघम शरणम गच्छमि!
यही सीख शिष्यों को दी गीता भी करती सतत नममि।
गीता पांडे अपराजिता
रायबरेली उत्तर प्रदेश