ये ज़िन्दगी थोड़ा आहिस्ता चल

विनोद कुमार पाण्डेय

ये ज़िन्दगी थोड़ा आहिस्ता चल,

चलती चली अब तक तू तेज रफ्तार,

मंजिल की ह‌सरत थी,

भागती रही तू भूलकर प्यार।

चलती चली तू आगे बढ़ी, 

छोड़ चली उन्हें, जिनके सहयोग से 

सफलता की सोपान चढ़ी।

जिन्दगी, तू समझ न पाई

जीवन का अर्थ

बहुत कुछ हासिल कर,

महसूस कर रही,

मिला जो,वह सब है व्यर्थ।

भूल गई तू सामाजिक समरसता,

नहीं पहचान पाई ईश्वरीय अंश

जो सबमें है बसता।


जिन्दगी तुमसे है समाज को आस,

नजरअंदाज न कर उन्हें,

जो रहे हैं तुम्हारे खास।

विनोद कुमार पाण्डेय

     शिक्षक

 (रा०हाई स्कूल लिब्बरहेड़ी, हरिद्वार)


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