ना जाने कब वो ईद होगा



आशा सिंह 

ऐ चांद जरा जल्दी आना,

अपने संग हर खुशियां लाना।

हवा जो बुझी-बुझी सी है,

उसमें मधुरस फिर घोल दो

हर दिशाएं सुरभित फिर कर दो।

          ना जाने कब वो ईद होगा,

          जिस घड़ी में तुम से दीद होगा।

फिर से खुशहाली आधे

मदमस्त फिजाएं हो जाऐं।

अल्लाह अब रहम कर दो,

अपनी रहमत हम पर कर दो

अब और इंतहा मत लो,

बहुत हुआ अब माफ करो।

ये चांद अब फिज़ा बदल,

हम सब पर रहमत कर।

आशा सिंह 

मोतिहारी पूर्वी चंपारण बिहार


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