सहारे भाग्य के जो बैठ गये
वो जीवन पर्यन्त रोते गये
खुद कर्म पथ पर चले नहीं
बे नाहक भाग्य को दोष देते रह गये
कभी देखते थे जो स्वप्न स्वर्णिम
वो आज अधूरे रहगये
कर्म अनुयायी जो बने
वो सदा बढ़ते गए
सहारे भाग्य के जो बैठ गये
वो जीवन पर्यन्त रोते रहगये
कौन कहता भाग्य बाँझी
जब कर्म पथ पर चले नहीं
सागर किनारे खड़े जो होगये
आज वो गहराई मापते रहगये
जो जले थे कभी बुरादे की तरह
जब आग की की लव से दिगे ही नहीं
वो आज धुंन्ध की तरह
सुलगते रहगये
सहारे भाग्य के जो बैठ गये
वो जीवन पर्यन्त रोते रहगये
(शरद कुमार पाठक)
डिस्टिक _____(हरदोई)