ताना जन मारीं

विद्या शंकर विद्यार्थी 

भले जन बोलीं रउरा ताना जन मारीं

दिलो एगो कागद हउए पन्ना जन फारीं 

सवती के जिनिगी में सुरूज कइसन चान बा 

जबकि मेरावल गइल सुधिया के हमार धान बा 

हमहीं भींजाईं आँचर आँचर हमहीं गारीं ,

दिलो...। 


छिप छिप के चले ना जादे दिन आँखमिचौनी 

काम आवे थरिया, ना काम आवे मउनी

हवादार मड़ई के जन जी लहकारीं 

दिल. ।


पछिम के हवा आइल पछिम के पानी 

पूरूब के नगरिया के हईं हम जी थानी 

दीया से जोत करीं घर जन जी जारीं 

दिल...। 


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