'प्रेम'
प्रेम आस है, विश्वास है,
प्रेम से जीवन की बहार है।
प्रेम संजीवनी है सम्बन्ध की,
प्रेम खुशियों का सार है।
प्रेम सूखे होंठों की मुस्कुराहट है,
नींद है, भूख और प्यास है ।
प्रेम, सूखी आंखों की रोशनी,
प्रेम भवसागर की पतवार है।
प्रेम मां की लोरी भी है,
प्रेम बाबुल के मन का तार है।
भाई-बहन कीअनबन भी है,
प्रेम ,राखी का त्योहार है।
प्रेम प्रियतम का श्रृंगार है,
प्रेम सृष्टि का आगाज है।
प्रेम दो आत्माओं के मिलन का,
पावन आधार है ।
प्रेम जब तक है,
तब तक है मधुमय बसन्त।
प्रेम के बिना कुछ भी नहीं,
प्रेम से ही चलता संसार है।
'अपनों के लिए मर जाएगा'
वो रूठ कर कहां जायेगा?
अपना है लौटकर आयेगा।
ये रूठने-मनाने की बला भी,
न छूटी है,न वो छोड़ पाएगा।
बस इतना ही कहना है मेरा,
वोअपनों के लिए मर जाएगा।
टूट सकता है वो किसी तरह,
झुकना उससे न हो पाएगा ।
सत्य की खातिर जान लड़ाता है,
मेरा है, वो तह तक उतर जाएगा।
कल तक जो चुगली करता रहा,
सच के सामने कैसे ठहर पाएगा?
अनुपम चतुर्वेदी
सन्त कबीर नगर, उ०प्र०