मृदुला कुशवाहा
तुम मुझे तोड़ोगे,
मैं टूटकर भी सम्भल जाऊँगी।
तुम मुझे जितना रूलाओगे,
मैं रोकर भी मुस्कुराऊंगी।
तुम मेरे पंख काट दोगे,
तो भी मैं हौसलों से उडा़न भर लूंगी।
नारी हूँ, बार बार अहसास ना कराओ,
इस बात का,
पूरा जमाना साथ छोड़ दे,
फिर भी अकेले चल के दिखाऊंगी।
राह कठिन है, तो क्या हुआ,
राह में कंकड़ मिलेंगे भी तो क्या हुआ,
उन्हें चुन चुनकर राह से हटाऊंगी,
पुष्पों से पूरे पथ को सजाकर,
श्वेत रोशनी से उसे धवल कर,
अपना मार्ग बनाऊंगी,
सौ बार तोड़ोगे मुझे,
हर बार मैं टूट टूटकर भी सम्भल जाऊँगी!!
अपना राह बनाऊंगी..अपना जीवन सजाऊंगी!!
मृदुला कुशवाहा
गोरखपुर