उम्मीद

  

कौशल वंदना भारतीय

इन्सान के सबसे बड़े दुःख का कारण वो उम्मीद होती है जो वह अपने रिश्तों या दोस्तों से बना लेता है। बात प्यार की है-तो हर कोई बराबर प्यार चाहता अपने साथी से। बात रिस्पेक्ट की है तो हर किसी को बराबर चाहिए। बात विश्वास की है तो वो भी हर किसी को बराबर चाहिए।

क्या कभी सोचा है किसी ने कि स्वयं हम किसी की उम्मीद पर कितना खरा उतरते हैं। क्या हम किसी को वैसा ही प्रेम इज्जत और विश्वास दे पाते हैं।

नहीं कर पाते हम तो हमें यह हक भी नहीं किसी से उम्मीद रखें।यदि प्यार चाहिए इज्जत चाहिए विश्वास चाहिए तो एक तरफ़ा नहीं चल सकता। रिश्ते टूटते क्यों हैं जब उम्मीदें बढ़ती हैं। उम्मीदें क्यों बढ़ती हैं जब हम स्वयं किसी रिश्ते को ज़रूरत से अधिक हक देते हैं।

पति-पत्नी अथवा मित्र

पहले पहल जब दो लोग मिलते हैं बेशक वह पति-पत्नी हों या मित्र एक दूसरे को हक दे देते तुम मेरे अपने हो कभी भी कुछ भी कह सकते हो । अधिकतर है तुम्हारा मुझ पर।

परन्तु प्रोब्लम तो तब शुरू होती जब उस अधिकार का प्रयोग शुरू होता। पहले पहल तो अच्छा लगता परंतु धीरे धीरे वही अधिकार गले का फंदा लगने लगता। एक-दूसरे को अधिकार से की बात तानाकशी सी लगने लगती।वह दोस्ती प्यार या कोई अन्य रिश्ता बोझ प्रतीत होने लगता।

आखिरकार नौबत टूटने या बंधे रूंधे निभाने की आ जाती।आखिर क्यों अधिकार उम्मीद का दायरा इन्सान इतना बढ़ाता है जो वह निभा ही नहीं सकता। क्यों किसी को उम्मीद देता या स्वयं किसी से उम्मीद रखता जिसके पूरा ना होने पर दर्द में डूब जाता।

माता पिता

जीवन का उसूल केवल इतना हो ना उम्मीद दो ना उम्मीद रखो।माता पिता को उम्मीद होती बड़े होकर बच्चे सहारा बनेंगे।बेटे ने सेवा नहीं की कारण बहू को माना जाएगा। क्यों बेटे के संस्कारों की नींव पक्की नहीं की।बहू सेवा करे या नहीं तुम्हारा धर्म है।या फिर बुढ़ापे के लिए क्यों नहीं इंतज़ाम किया पहले से ही।आ गई ना उम्मीद फिर बीच में।कभी बेटे से उम्मीद कभी बहू से तो कभी पोते पोती से। उम्मीद में बुढ़ापा खराब।

बच्चे

बच्चे उम्मीद रखते माता पिता जीवन का त्याग करने से पहले हमारे लिए कुछ कर जाएं ताकि जीवन में हमें भी सहारा मिले। नहीं कर पाए माता पिता कुछ बच्चों खातिर तो बच्चे सोचते हमारे माता-पिता ने हमारे लिए कुछ नहीं किया। क्यों भाई तुमको जन्म दिया ।पालन पोषण किया।कम था क्या?पता नहीं इस सब में उन्होंने कितनी पूंजी खत्म करदी।अपने बुढ़ापे के लिए भी नहीं रखा कुछ।पता नहीं तुम्हारा पेट भरने के लिए कितनी बार भूखे सोते होंगे।तुम किस बात की उम्मीद करते हो।

उम्मीद का निवारण

केवल आत्मकेंद्रित होकर जिओ ।यह आधुनिक समय भी शायद यही सिखाने आया है। कोई किसी का नहीं है।केवल आप स्वयं अपने हो।

स्वयं से वफादार बनो।नेक कर्म करो और जिंदगी में जो नेक कर्म किए वापिस मुड़कर नहीं देखो। वापिस मुड़कर देखने से उम्मीद जगेगी और फिर दुःख का मकड़जाल तुमको घेर लेगा।

ध्यान केंद्रित वो आत्मकेंद्रित होना ही दुखों का निवारण है।


कौशल वंदना भारतीय।©®

पंजाबी से भारतीय तक मेरी अग्रिम यात्रा।

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