श्मशान की चीख


श्री कमलेश झा

शमसान चीख रहा मृत्यु पर 

जगह नही है आना कल।

क्या काल ने आरक्षित कराया था

 शमसान भूमि पर जगह कल।।

विपदा के इस घोर अँधेरे

 दिख नही रहा अब कोई राह।

काल ग्रास बना मानव को 

लील रहा है बेपरवाह।।


व्यवस्था देखो कितनी सुगढ़ है 

लाशों को भी करना पड़ रहा इंतजार।

मरने का कारण दिखलाकर

 हो रहा अंतिम संस्कार ।।


क्या काल पाश में बंधते समय 

पूछा था मृत्यु का राज ?

पर शमसान तो पूछ रहा है 

मृत्यु का भी कारण आज।।


एक कॅरोना ने आकर फैलाया

 अपना काला साम्राज्य।

काल दंड को हाथ मे लेकर

 तांडव मचा रहा है आज।।


इस देव भूमि पर कैसी छाया

 जो हटने का न ले रहा है नाम।

अस्पतल से शमसान भूमि तक 

फैला है अब मौत समान।।


हे काल करो कुछ सोचविचार

 अपने पाश को तुम दो विराम।

निरीह और बेबस बन बैठे है 

थोड़ा तो लेने दो सांस।।


निजस्वार्थ के चक्कर में

 फँस रहा जनता का जान।

राजनीति के इस गंदे खेल में 

बिखर रहा है मौत समान।।


बेसक काल से तुम्हारा समझौता

 जो फेंकेगा न तुम पर पाश।

माफ करो तुम आम जन को 

उनका न समझौता खास।।


महामारी आई है चली जायेगी 

याद रहेगा तुम्हारा वरताव।

कॅरोना जितना दोषी माना जायेगा

 तुम्हारा यह कुटिल चाल।।

श्री कमलेश झा

राजधानी दिल्ली

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