महतारी

साक्षी साहू सुरभि

सृष्टि के जनम देवैया,तै जननी तै महतारी।

तोर कोरा सुग्घर छैंहा,सुख दुख के तै संगवारी।


दुख पीरा सही के,हमला जीवन दान दिये।

तोरे अँचरा के छैया म,लुका के तै राख लिये।

लईका के रकछा खातिर,सुनें तै सबके गारी।

जनम देवैया,तै जननी तै महतारी


फूल फूल म हमला रेंगाये,गड़े तोर गोड़ म कांटा।

सुक्खा म हमला सुताये,तै सुते वो कांचा।

तोर हिरदे म सब बर,भरे हे मया भारी

जनम देवैया तै जननी तै महतारी


छोटकुन बगिया के तै माली,किसम किस्म के फूल खिलाये

सबला पलोये मया के पानी,आंधी पानी सबले बचाये।

तोर मया के महक म,महके सुग्घर फूलवारी।


तोर परसादे जगमगाये,घर द्वार अउ अँगना।

घर परिवार म बंधाय हावे,मया के अटुट बंधना।

तोर बांधे नई टुटे,मया पीरित के डोरी।

सृष्टि के जनम देवैया, तै जननी तै महतारी

तोर कोरा सुग्घर छैंहा, सुख दुख के तै संगवारी ‌।


साक्षी साहू सुरभि

 महासमुंद छत्तीसगढ़

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