नीरज कुमार सिंह
मां शब्द भले ही बहुत छोटा है ।पर वास्तव में देखा जाए तो यह शब्द संपूर्ण सृष्टि है ।मां शब्द से हमारी उत्पति हुई l वो मां ही है जो हमको नौ महीने कोख में पालती है ।मां ही तो है जो हमें बालपन में कच्चे गीले मिट्टी से होते हैं ,...तो मां ही हमें आकार देती है ,...हमे ढालती है। मां पहली गुरु होती वो हमको चलना, बोलना ,खाना पीना, रहना,सब सिखाती है।मां ही तो नैतिकता से भरे ज्ञान हमे बताती है।मां हमारी अच्छी मित्र है क्योंकि हमारे दुख से दुखी हों ,जाती है।मां कभी नही चाहती हम गलत राह पर चले इसलिए मां से बड़ा मित्र कोई नही होता है।मां हमे चोट लगी तो सैकड़ो नुस्खे अपनाती हैं,इसलिए मां जरूरत पड़ने पर बच्चो के लिए ,डाक्टर ,योद्धा , साथी ,जासूस ,वकील , जज सबकुछ बन जाती है कहने का अर्थ यही है ,,...मां सभी अपने आप सारे पात्र को जीती है।मां भगवान की दूसरी रूप होती है।जो बच्चा अपने मां के दिल को दर्द देता है ,वो कभी सुखी नही रह सकता है ऐसा स्वयं भगवान कहते हैं। अतः मां को सदा प्रसन्न रखना चाहिए।
नीरज कुमार सिंह
देवरिया,यू पी