लघुकथा
कीर्ति चौरसिया
सीमा परिवार की सबसे बड़ी बहू थी, समझदारी और सहयोग की भावना ,उम्र के साथ साथ उसमें भी आ गई थी।परिवार के सभी सदस्यों की खुशी का ख्याल ,और आपसी सौहार्द बनाने मे ही विश्वास रखती थी।पिछले तीन महीनों से इस महामारी के फैलने और लॉकडाउन की वजह से सब घर में ही थे।सब हंसी खुशी साथ उठते बैठते । कि अचानक सीमा की सासू मां का स्वस्थ्य बिगड़ने लगा , डाक्टरी जांच में सासू मां की रिपोर्ट भी पॉजिटिव आ गई।सभी उदास और दुखी थे ,किसी को ये समझ नहीं आ रहा था कि ये हुआ कैसे ??
माता जी को तो सबसे सुरक्षित रखा गया था सभी उनके प्रति सचेत थे ।सीमा समझ गई थी कि ये कैसे हुआ ,पर उसने मौन रहना ही उचित समझा। अगर सीमा अपना मुंह खोलती तो परिवार में भूचाल आ जाता ।सीमा को याद आया कि एक दिन,दोपहर को जब सभी अपने अपने कमरों में आराम कर रहे थे कि उसने देखा कि मां जी किसी को बिना बताए घर से बाहर जा रही हैं,सीमा ने उन्हें रोकने की कोशिश भी की थी।पर उन्होंने बताया कि बुआ जी की हालात ठीक नहीं है ,बिना पति और बच्चों के इस लॉकडॉउन में घर कैसे चला रही होगी ,और उसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई है ,मै उसकी कुछ पैसों से मदद करना चाहती हूं।
जब से बुआ जी ने अपने मां बाप और भाई की मर्जी के खिलाफ जा कर शादी की थी ,तब से ही उनका परिवार वालो से नाता टूट गया था। लेकिन सीमा की सास अपनी ननद का चोरी छुपे हालचाल लेती रहती थी।सीमा को ईश्वर पर पूरा विश्वास था,वो जानती थी कि किसी मजबूर और असहाय की मदद करने वाले पर ईश्वर कुपित नहीं हो सकते। मां जी जल्दी ही इस बीमारी से बाहर आ जाएंगी। बस हमें उनकी हिम्मत बनना है!
कीर्ति चौरसिया
जबलपुर ( मध्य प्रदेश)