शास्त्री सुरेन्द्र दुबे (अनुज जौनपुरी)
पत्रकारिता का सूत्रपात,
घात आघात प्रतिघात,
वेदना संवेदना पक्षपात,
वाद विवाद शौम्यसंवाद।।
कहां कैसे किस दिन,
घटनाक्रम का संकलन,
विवेचनात्मक कथन,
शोध सत्यपरक लेखन।।
समाज साहित्य दर्पण,
कलम की वाणी से,
स्याह स्याही का साक्ष्य,
कागज को समर्पण।।
अनुकूल, प्रतिकूल विधा,
दोनों पहलुओं पर विचार,
सत्कार और दुत्कार,
नमन और धिक्कार,।।
कोरे कागज को समर्पित,
तथ्यात्मक अखबार,
अपरोक्ष रूप में शासन, प्रशासन का सलाहकार,।।
सामाजिक मित्र और दुश्मन ।
बिना किसी सुरक्षा के,
बेधड़क रात हो दिन ,
देश की सेवा में समर्पित।।
गांव गली से निकल कर,
शहर और सत्ता के गलियारों तक,
खबर-संसार का, ख़बरनवीस निर्भीक, निष्पक्ष,निडर,पत्रकार।
परन्तु किन्तु लेकिन
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*आज़ का पत्रकार*
इकतारे का स्वर मंद हो गया है ।
कलम की धार को जंग लग गया है।।
सत्य की धार से पत्रकार डर गया है।
चाटुकारिता पर अब उतर गया है।।
कहां से चला था कहां आ गया है।
कलम बेचकर इमां खा गया है।।
नामी चाटुकार पत्रकार बन गया है।
चौथे स्तंभ का आधार बन गया है।।
सत्ताधीशों का अय्यार बन गया है।
पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर,
राहु-केतु का ग्रहण बन गया है।।
अनपढ़ पत्रकार बन गया है।
खबरीलाल होशियार बन गया है।।
चंद बचे है कलम के धनी सिपाही।
कोने में सिसक रही लेखनी स्याही।।
सत्ता शासन की कमी लिखने वाला।
सत्य शोधक गद्दार हो गया है।।
शास्त्री सुरेन्द्र दुबे (अनुज जौनपुरी)
वरिष्ठ पत्रकार