अक्षम्य गलती
चुनाव की खुजली
मिट गई हो तो
देखो अब
जनता का क्या हाल है
किसी की मांग उजड़ चुकी
कहीं छोड़ गया
मां का लाल है
गांव गांव निकल रहे
लाशों पर बज रहे बाजे
ढोल ताशे खूब बजाओ
निकालो धूम से
विजय जुलूस के तमाशे
तुम को भगवान समझ
दिया था ऊंचा आसन
पर तुम भी
सब के जैसे निकले
धृतराष्ट्र से देखते रहे
लूटता रहा दुशासन
तुम्हारी एक गलती की
सजा जनता कैसे पाती है
आके देखो गांवो में
शमशान की आग
अब नहीं बुझ पाती है
सूखते नहीं माओं के आंसू
बिलख रही बेवाए
अनाथ हुए बच्चे
बताओ अब कहां ये जाएं
तुमने कितना गलत किया
तुम ना यह समझ पाए
मासूम बचपन के हाथों में
तुमने कटोरे पकड़ाए
गुलमोहर
रक्तवणी पुष्पों से लदी
और चैत की तीखी धूप
कुछ अतिरिक्त दमकता है
मनमोहक नयनाभिराम
गुलमोहर तुम्हारा रूप
फूलों की चादर
बिछते जाते तल में
देख दृग नहीं अघाते
रूप तुम्हारे पल
अबोले से रह जाते
जिह्वा होती चुप हो
देखकर दर्शनाभिराम
गुलमोहर तुम्हारा रूप
गुच्छा गुच्छा तुम जो
शाखों पर लटक रही
हवाओं के ताल पर
ऊपर नीचे मटक रही
मोल बढ़ा देती है
भोरे भोरे जो गूंजे
कोकिल की कूक
विस्मित रहता देख
गुलमोहर तुम्हारा रूप
रेखा शाह आरबी
जिला बलिया उत्तर प्रदेश