पालनहारों की आहें गमगीन होतीं

 

श्रीकांत यादव

फसलों के ओस का पानी

उतरने लगता है

जब बेबसी बनकर

मिट्टी के माधव बने


किसानों की आंखों में

मचाती हुई हलचल

आती है रवानी

बनकर तूफानी 

ठूंठ राजनीति की

सुशुप्त शाखों में! 


अखबारों के कुछ पन्ने 

कभी नम जाते हैं

गुलजार सड़कें कभीं 

सहम जाती हैं

चरमराते पहिए 

जब थम जाते हैं

राजनीति में दिखावे की

तब रहम जागती है! 


लगे लंगर के अंगार 

जहां लहलहाते

सड़कों पर लपटें 

जहां उठ लपलपातीं 

जागती है सियासत 

सुगबुगाते सूबों की

किसानों की त्योरियां 

बल खातीं बिलबिलातीं!


सिहरते हैं किसान  

कभी ठिठुरन में

उबलते हैं जहां

आग उगलती सड़कें की

अलकतरे के पिघलन में

रातें सड़कों पर 

त्रस्त बीतती हैं

पड़ती है जान 

विपक्षी दल के कतरन में

देने वाली तंग हथेलियां

जब जब रीतती हैं! 


मांगती हैं कतरा जहां 

डबडबाई नजरें

पालनहारों की आहें 

वहां गमगीन होतीं

झीनी हैं चादरें

उनसे झांकती नजरें

जिनके डगमगाते बजरे

क्या फिकर जहां 

जिनके संग संगीने होतीं! 


जान न हो यदि 

जहां बिरोधी दलों में

कैसे हों फैसले 

फिर फिक्र कैसी 

जिसे ना पूछता कोई 

किसी मसलों में

तो क्या करना यहां 

उनकी जिक्र ऐसी! 


वे गिना रहे हैं

सवालों में कमियां

कानूनों से रूठे 

जैसे उबल रहे हैं

उष्ण रातों की 

उनके आंखों में  

शीतोष्ण नमियां

दया से लेकिन 

वे कहां पिघल रहे हैं! 


सोचा न होगा वैसे 

क्या ऐसे गले पड़ेगी

न रोक पाया जिसे

संसद में अवरोध ऐसा 

कानून की गाड़ी है 

सदा सरपट चलेगी 

सड़कों पर पैदा 

ये गतिरोध कैसा! 


राजनीति में मुद्दे पर 

हमेशा है होती अनबन

दिल में दूरियां तो

नहीं पनपायी जातीं

आरोपों से चेहरे 

चमकते रहें हैं बनठन

पानी में पूरियां तो

नहीं सिकवायी जातीं! 


चमकती है राजनीति

जब चर्चे में दम हो

केचुए की चाल में 

वह सरसराहट कहां है

सांप नेवले में 

कौन किससे कम है

अपने अपने मुद्दे में 

गर्माहट यहां है! 


हांफती सड़कों का 

हुआ है जोश ठंडा 

राजधानी के राजमार्ग 

अभी सुस्ता रहे हैं

हाथ में थामें हैं

जबसे वे लोग झंडा 

ढीले न पड़े हैं ये 

अभी चुस्ता रहे हैं!


अन्नदाता और सरकार में 

कुछ ऐसी ठनी है

झुकने की सूरत में 

अभी कोई नहीं है

कानून के पक्ष विपक्ष में 

मातमीं सी तनातनी 

यदुवंशी जागती है जनता

अलसायी है बेशक

अभीं सोई नहीं है! 


यदि उनकी ऐसी 

बेबसी न होती

चमन में बहारें जो 

उनके भी आतीं

उनसे रुठी जो

उनकी हंसी न होती 

औरतें उनकी भी 

खुशहाली के गीत गातीं!


श्रीकांत यादव

(प्रवक्ता हिंदी)

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