हाय रे ये लॉकडाउन

एक हास्य 



सवि शर्मा

“अरे भाभीजी क्या हाल है ?

                 मौसमी ने सुबह सात बजे अपनी पड़ोसन विद्या को आँगन में झाड़ू लगाते देखा तो सहसा पूँछ बैठी ,जो की खुद भी झाड़ू ही लगा रही थी ।


“कुछ नहीं अभी तो केवल झाड़ू लगी है ।अभी तो सारा काम ही बचा है “।

                  विधा ने कहा। और दोनो पड़ोसन अपनी झाड़ू छोड़ उस दीवार के पास आ गई जो उन दोनो के घरों के बीच कम ऊँची थी जिससे वे आसानी से अपने घरों से बात कर लेती थीं ।

   “ कितना बुरा हाल हो गया है ना कोविड में !एक भी सीरियल नहीं देख पा रहे ना ही दिन में सो पा रहे ।”

मौसमी ने कहा 

“और बच्चे जब से बाहर से लौटे हैं घर से ही काम कर रहें हैं उन्हें घर का खाना ही पसंद नहीं आता।”

विद्या बोली ।

“और तो और ये पति लोग है नहाते हैं तो बिस्तर पर तौलिया डाल देंगे ,कभी चाय माँगेंगे ,खाने में रोज़ नई चीजें चाहिए !किसी काम को भी हाथ नहीं लगाते “।

” यही हाल इनका भी है मजाल है ज़रा सा भी हाथ बटा दें,और बाहर से मँगवा भी नहीं सकते ,यही हाल मेरे घर में भी है कमर ही दुख जाती है काम करते ।जाने ये करोना कब जाएगा कब ये लोग ऑफ़िस जाएँगे ?।कब बाइयाँ आएँगी और हम चैन से सोए गे ।सारा दिन बस काम और काम ।“

     तभी मौसमी जी का सात साल का बेटा आकर बोला

“माँ, पापा ने चाय बना दी आपको बुला रहे हैं जल्दी चलो “

एक चपत लगी बेटे को 

क्यूँ फ़ालतू बात करता है और अंदर ले जाने लाग़ी 

 तभी विद्या जी के घर से उनके पति की आवाज़ आई

 “सुनो कितने आलू छीलने है चार या पाँच”

     विद्या जी के पति अंदर से ही बोले ।

मौसमी जो कुछ कहने जा रही थी बेटे के साथ अंदर जा रही थी पर विद्या जी के पति की आवाज़ सुन रही थी 

विद्या के घर से ज़ोर से आवाज़ आ रही थी 

“करते कुछ हो नहीं बस पड़ोसियों को सुनाने के लिए काम बताया जाता है ।जब आप रोज़ ही पाँच आलू छील रहे थे आज फिर पूछने की क्या ज़रूरत थी!”

    उधर मौसमी जी के घर के दरवाज़े ज़ोर से बंद करने की आवाज आई।


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