!!मेरा हृदय उद्गार!!
गिरिराज पांडे
जब हम दोनों मिले कहीं तो वहां परिस्थितियां ऐसी हो
नीले परिधानों में सुसज्जित वहां पर मेरी प्रियतम हो
नीले नीले अंबर नीचे श्वेत वर्ण के बादल हो
एक दूजे से मिलने को बेताब दिखाई देते हो
रह-रहकर अध खुला अंग बिजली के जैसा चमकता हो
सूने सूने मन को मेरे भाव विभोर ओ करता हो
झूमता मौसम रहे सुहाना रंगीन शाम की लाली हो
बादल की बेचैनी कहती निश्चल प्रेम कहानी हो
चमक रही चंदा पर हरदम काली घटा का पहरा हो
मन को मिलाकर दिल से मेरे दिल में ही वह रहता हो
सुर्ख गाल और मूगे जैसे लाल ओठ की चर्चा हो
मोटी मोटी आंखों मैं अब भरी प्यार की भाषा हो
डूब के प्यार में उसके ही जीवन मेरा सवरता हो
चारों तरफ ही मेरे पास अब प्यार ही प्यार बरसता हो
फूल सुगंधित वृक्ष लगे उस पर पारक को कोना हो
वहां पर हम दोनों के सिवा और कोई ना दूजा हो
गिरिराज पांडे
वीर मऊ
प्रतापगढ़