महेन्द्र सिंह राज
माता की ममता सदा , होती। है अनमोल।
माया मोह की निधि वह,सके न कोई तोल।।
माली बोया बाग में , तरह- तरह के फूल।
बिन आज्ञा के तोड़ना , होगी भारी भूल।।
कोरोना की मार से , व्यथित हुआ संसार।
अब तक तो ना दीखता, सुधार के आसार।।
कोरोना की मार से , जनता का नुकसान।
प्रतिदिन मौतें हो रही, नहीं खाली श्मशान।।
सुबह सुबह सब जागिए,लीजै हरि का नाम।
जो भी जन इसको पढ़े , मेरा कोटि प्रणाम।।
सबको अपना जानना , अपनापन पहचान।
विश्व बन्धुत्व भावना , का करिए सम्मान।।
आशा अपने साथ है , निराशा का न नाम।
मित्र वही सच होत है , जो दुख में दे काम।।
मानव खतरे में पड़ा , रोज हो रही मौत।
कोरोना जग में बना , मानवता की सौत।।
त्याग तपस्या दान बिन ,मनुज जनम बेकार।
कमहेन्द्र सिंह राजर्महीन नर भूमि पर , होता है भू भार।।
वृक्षों पर जब फल लगे , झुक जाती हैं डाल।
तरुओं से सीखो सभी,झुकना जब हो माल।।
नूतन आया वर्ष यह , वही पुरानी बात।
कोरोना के रोग की , मिली हमें सौगात।।
कविता कविकीआत्मा,कविता कविका सार।
मातु शारदे की कृपा,कविता का आधार।।
महेन्द्र सिंह राज
मैढी़ चन्दौली उ. प्र.