कवियत्री मीनू' सुधा' की रचनाएं


सिसकी 

जब भोर की किरणें आती हैं,
तब रोम रोम खिल जाता है, 
घनघोर अंधेरे की सिसकी
उजियारे में खो जाती है।
आशा की डोर न छोड़ो तुम,
जीवन से मुख ना मोड़ो तुम,
शुभ- चेतन का संचार करो, 
मन -मस्तिष्क में सुविचार भरो।
जब सुबह का सूरज खिड़की से,
मेरे घर में पग रखता है,
पुलकित होता मेरा रोम -रोम
हर कोना मुझसे कहता है।
विश्वास का सूरज निकलेगा,
हर तरफ उजाला फैलेगा
फिर दस्तक देंगी सब खुशियां
हर अपनों के दरवाजे पर,
फिर गले मिलेंगे खुश होकर
फिर हाथ मिलाएंगे हम -तुम
मुस्कान खेलेगी अधरों पर,
सिसकी हो जाएगी गुमसुम।  

नमन "मांँ को"

खुशियों की रसधार हो तुम,
निर्मल गंगा की धार हो तुम,
आंँखों में प्यार झलकता है,
 दिल में जिसके रब बसता है,
मेरे मन का उद्गार हो तुम,
मझधार में भी पतवार हो तुम।।
हर शब्द दुआ बन जाता है,
कोई गम पास नाआता है,
हर सुख की उत्तम खान हो तुम,
मांँ ईश्वर का वरदान हो तुम।।
मांँ, प्रेम की तुम परिभाषा हो,
करुणा, ममता और आशा हो।
हर पल ,हर क्षण ,हर दिवस तेरा,
यह धरा, सृष्टि और व्योम तेरा,
तू जीवन की खुशबू का चंदन
मांँ तुझको शत-शत बार नमन।। 

                    सृष्टि के सभी मातृ शक्तियों को समर्पित
                                  मीनू' सुधा'
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