विज्ञान

गीता पाण्डेय अपराजिता

अपने तप,त्याग ,तपस्या से ,

यह मानव सृष्टि सजाता है ,



सकल विश्व को किया प्रकाशित,

फिर भी विज्ञान डराता है ।टेक।


पंचतत्व से निर्मित काया ,

इसमें ही ब्रह्माण्ड समाया ,

जड़,जग,जंगम भी चाह रहे,

जानें,कैसी होती माया ।

जितना ढूँढा क्षिति,जल,अम्बर ,

हर भेद सघन गहराता है ।

अपने तप,त्याग,तपस्या से 

यह मानव सृष्टि सजाता है ।1।


नित नूतन पथ का वरण किया,

निज धर्म सहज संचरण किया ।

हृदय दुखे नहि कभी किसी का -

हो पर हित रत आचरण किया।

युग युग के काल खण्ड में बॅध

यह समय हमें भरमाता है।

अपने तप,त्याग,तपस्या से 

यह मानव सृष्टि सजाता है ।2।


धर्मो जनित विज्ञान सहायक ,

उठा तूलिका बन जा नायक।

शस्य श्यामला धरती प्यारी -

मनुज बना तू रहने लायक।

विध्वंसक गतिविधियों से ही,

तुझे तो विज्ञान डराता है ।

अपने तप ,त्याग,तपस्या से ,

यह मानव सृष्टि सजाता है ।3।


गीता पाण्डेय अपराजिता

रायबरेली (उ0प्र0)

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