खामोशियाँ-
बेहद हैं,
बेइन्तहां हैं,
बेहिसाब होती हैं।
खामोशियाँ-
मन में,
कितना दर्द,
कितनी टीस छिपाए,
अंतर्मन को कचोटती हैं।
खामोशियाँ-
झूठी आस,
खोया विश्वास,
स्वप्नों के मायाजाल में भटकती,
सन्नाटा सा बुनती हैं।
खामोशियाँ-
कितनी भावनाओं,
कितने विचार,
कितने शब्दों पर,
ताला लगा देती हैं।
खामोशियाँ-
अपनी कहानी,
कहने को आतुर,
डा संगीता पांडेय 'संगिनी'
अनकहे बोलों के लिये,
शब्दों को तलाशती हैं।
खामोशियाँ-
कभी- कभी
जीवन पर्यंत,सदा साथ चलकर
वादा निभाती है।