कवियित्री डॉ पंकजवासिनी की रचनाएं

 


सेवा

भू पर परोपकार सबसे बड़ी सेवा है! 

जो भी किया रे मिल जाता उसे मेवा है!! 


अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनं द्वयं! 

परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीडनम्!! 


जो भी हो जरूरतमंद करो उसकी सेवा! 

जो भी हो दीन दुखी करो उसकी सेवा!! 


जो भी हों घर में वृद्ध अशक्त विवश लाचार! 

प्रेम आत्मीयता से करें उनकी सेवा!! 


कि बुढ़ापा उनको लगे नहीं कभी अभिशाप! 

निज निस्वार्थ परवरिश पर ना करें पश्चाताप!! 


वधू भी करें माँ सम सास-

ससुर की सेवा... 

उनके पुत्र के बल ही पाती स्वर्ग सुख- मेवा!! 


हर देशवासी करें निस्वार्थ देश- सेवा... 

तभी कोई न बिलखेगा भूख जानलेवा!! 


पाएंँगे सब रोटी वस्त्र गृह शिक्षा- मेवा! 

भर प्रेम करुणा: करो मानवता की सेवा!! 


न हो इक भी दीन दरिद्र करो इतनी सेवा... 

वसुधैव कुटुंबकम् हो मूर्त धरा पर देवा!


शबरी


पशु पीड़ा देख भीलपुत्री- मुख से निकली आह! 

माता पिता का गृह तज शबरी चली प्रभु राह!! 


राम धुन की रट लगाए वन वन घूमे शबरी... 

गुरु मतंग ने कह दिया राम लेंगे तव खबरी!! 


शबरी नित बाट जोहती कब आएंँगे राम? 

मन का मनका फेरती प्रभु मेरे श्रीराम!! 


शबरी नित राह बुहारती आशा  लिए  अदम्य ! 

नवल सुरभित पुष्प बिछाकर पथ बनाती सुरम्य!! 


घन तप शबरी का फल गया आए प्रभु श्रीराम! 

प्रभु चरणों की धूल पा कुटिया बन गई धाम!! 


प्रभु के दरस को पाकर रोते नैन अधीर... 

रामभक्त शबरी भूली चिर वियोग की पीर!! 


प्रभु प्रेम में हो बेसुध चख चख बेर खिलाए... 

भक्त प्रेम के हो वशीभूत  प्रभु जूठन खाय!! 


गगनांगना छंद


प्रार्थना


कष्ट हरो हे मांँ जगदंबा, सिंह सुवाहिनी! 

भक्तों को ले उबार माता, संकट तारिणी! 


चहुँओर मची है त्राहि-त्राहि. जग को तारणा! 

वायरस मचा रहा विध्वंस. विषाणु मारना! 


लाशों के अंबार लग रहे, भय का पार ना! 

मौत का हो रहा व्यापार, लज्जा आय ना! 


मानवता का हुआ अति पतन, लज्जा आ रही! 

ईर्ष्या हिंसा घृणा घनी, जग में छा रही! 


मन के तमस अविवेक हर ले, विवेक दायिनी! 

सबके मन प्रेम दया भर दे, शुभ वरदायिनी! 


डॉ पंकजवासिनी

असिस्टेंट प्रोफेसर 

भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय

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