डॉ सरला सिंह "स्निग्धा"
बैशाख मास के शुक्ल पक्ष में,
धरती पर हुआ पावन अवतार।
भृगुवंशमणी जमदग्नि ऋषि के
घर दिव्यज्योति अवतरित हुआ।
अक्षय तृतीया का पावन दिन था,
आंगन में गूंजी मधुर किलकारी ।
माता रेणुका के आंचल में खिला,
सुंदर सा इक बालक मनोहारी था।
नामकरण की वेला आयी सुन्दर,
रामनाम से हुआ अलंकृत बालक ।
माता पिता की जान उसमें बसती,
ऐसा बालक सुन्दर छविधारी था ।
मां की आंखों की पुतली जैसा था,
मातृ-पितृ भक्त वो आज्ञाकारी था।
शस्त्र शास्त्र में निपुण हुआ शीघ्र ही,
वीर साहसी बालक वो भृगुवंशी था।
परशु विद्या में उसके समक्ष जगत में,
हर कोई दुश्मन भरता नित पानी था।
धोखे से ऋषिजमदग्नि की हत्या की,
दुष्टों ने रार परशुराम से ऐसे ठानी थी।
पितृहन्ता दुश्मन क्षत्रिय को दुनिया से,
परशुराम ने समूल नष्ट कर डाली थी।
पाण्डव कौरवको शस्त्रों की शिक्षा दी,
लखन के गुरुवर परशुराम ज्ञानी थे।
त्रेतायुग से द्वापर तक की महा यात्रा,
करनेवाले योगी तत्त्ववेत्ता विज्ञानी थे।
ब्राह्मणों के उत्थान हेतु नित रहे निरत,
योगी वैरागी और बालब्रह्मचारी भी थे।
ज्ञान संग शक्ति भी करना अर्जित सब,
गुरुवर परशुराम ऐसे मान्यताधारी थे ।
क्षीण दीन पड़े नहीं ब्राह्मण समाज ये,
समाज में जागृति सबमें यह लानी है।
शत शत नमन अभिनंदन वंदन करते,
परमपूज्य भृगुवंशमणि परशुराम की।
आओ ये धरा है पुकार रही फिर से,
स्वागत में खड़ा ये सारा ही जग है ।
डॉ सरला सिंह "स्निग्धा"
दिल्ली