कवियित्री नंदिनी लहेजा की रचनाएं

 


जन्नत

जन्नत की चाह होती सभी को

यह कहने को बात नहीं

बस कर्मों को तू रख सदा नेक,

पाएगा जन्नत यही

बचपन से सीखा हम सबने,सदा चलें राह नेकी की

जैसे कर्म करेगा बंदे ,पाएगा तू फल वही

तू सोचे अब तो कमा लूँ मैं शानो शौकत

भले हक़ मरे किसी गरीब का

जब आएगा बुढ़ापा तो जाकर हज़ और तीर्थ

मिटा दूंगा हिसाब अपने गुनाहों का

केवल तीरथ,स्नान करने से ,कर्मों से मुक्ति नहीं मिलती

बुजर्गों को कर बेघर ,बाहर करे दान,पुण्य ऐसे जन्नत नहीं मिलती

चाहे अगर जन्नत सा सुख,क्यों मरने का इंतज़ार करें

माता पिता की करें दिल से सेवा,सब का सदा सम्मान करें

ना मारे किसी का हक़ ,खुद मैं लाएं दया करूणा

न किसी धर्म को माने नीचे,रखें भाईचारा और सद्भावना

जन्नत सा हो जाएगा फिर हर घर ,जन्नत सा होगा सारा जहाँ

मन को रख तू व्यसन और विकारों से दूर,

फिर ना भटकना पड़ेगा जन्नत की तलाश में यहाँ वहां

पथिक

तू पथिक तेरा काम है चलना

माना राहें मिलेंगी ना आसान

कभी भूलेगा कभी गिरेगा

कभी राह में काँटा भी चुभेगा

पर कर्म के पथ पर रहकर अडिग

तुझको अपने कर्म है करना

क्योंकि तू पथिक तेरा काम है चलना

जीवन क्या इक सफर ही तो है

सुख दुःख इसके मोड़

सुख के रास्ते चलना है भाता

दुःख देता है हमें तोड़

पर यह तो कर्मों के है फल

जिसको हमने पड़े भोगना

क्योंकि तू पथिक तेरा काम है चलना

माना निरंतर परिश्रम करके

तू बहुत थक जाता है

 मंजिल अभी तो बहुत दूर है

तू व्याकुल हो जाता है

कर लेना विश्राम तू कुछ पल

फिर नई सुबह संग चल देना

क्योंकि तू पथिक तेरा काम है चलना


नंदिनी लहेजा

रायपुर(छत्तीसगढ़)

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

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