नटखट बचपन

 

सुषमा दिक्षित शुक्ला

अक्सर मुझको नटखट बचपन,

 याद बहुत आता है ।

माता का अनुपम दुलार ,

जो रोते हुए हंसाता है ।


कितना गहरा प्यार पिता का,

 जिसकी कोई माप नहीं थी ।


हम सब पर न्योछावर थे वह,

 अपनी तो परवाह नहीं थी ।


सखी सहेली वह बचपन की,

 जिनके साथ खेलते थे ।


भाई बहनों का संग खाना,

 साथ-साथ जब सोते थे ।


वह सावन के झूले सुंदर ,

वह बचपन की प्यारी होली।


 लुक्का छिप्पी, गुड्डा गुड़िया, 

जो थी सखियों संग खेली ।


बाग बगीचे पंछी नदिया ,

याद अभी भी आते हैं।


 वो टेढ़े मेंढे गांव के रस्ते,

 मन में घर पहुंच आते हैं ।


वह अतीत की सारी यादें ,

हैं मस्तिष्क पटल पर रहती ।


जब मन करता उन यादों में,

 जाकर हूं उड़ती फिरती ।


नए जन्म में फिर से वह सब ,

क्या मुझको मिल पाएगा ?


भोला भाला नटखट बचपन ,

लौट कभी क्या आएगा ?


अक्सर मुझको नटखट बचपन,

 याद बहुत आता है।


 माता का वह अनुपम दुलार ,

जो रोते हुए हंसाता है ।

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