हर शख़्स परेशां है हर आँख में है पानी
ज़हरीली हवा आई लेकर के परेशानी
अरमान मुहब्बत का हो जाए नहीं पानी
करना तुझे जो कर ले सब कुछ यहाँ है फ़ानी
कुछ कहना बड़ा मुश्किल कब छीन ले ये साँसे
लाचार हुआ जीवन है मौत की मनमानी
रिश्तों के नक़ाबों में अस्मत के छुपे क़ातिल
कहते हैं मुहब्बत है हसरत लिए जिस्मानी
नाशाद गुलिश्ताँ है उजड़ा है चमन सारा
उसने ही कली रौंदी जिसने की निगहबानी
कब मर्द से होते सब अधिकार उसे हासिल
औरत तो फ़क़त घर में कहने को ही है रानी
ये तेरी हँसी झूठी ये झूठे ठहाके हैं
हैं फूल खिले लब पर आँखें लगे वीरानी
हमने तो रखा दिल में इक चाँद सी सूरत को
इक उसकी मुहब्बत से है ज़ीस्त ये नूरानी
आई जो सबा तेरा फूलों सा बदन छू कर
महकी है फ़िज़ा दिल की ख़ुश्बू है ये पहचानी
ये चाँद सितारों की सब बात किताबी हैं
आकाश ज़मी पर मत लाने की हो नादानी
क्यूँ अपनी मुहब्बत पर इल्ज़ाम लगाएं हम
ये जुल्मो-सितम हम पर क़िस्मत की है बेमानी
ज्योति मिश्रा
पटना