दिन रात पहरेदारी है
कर रहे डॉक्टर तीमारदारी हैं
नर्सेज भी बच्चों को बहलाकर
सेवा भावना अपनाई हैं
दिनरात की चिल्हपों में
एम्बुलेंस की आवाज़ समाई है
टूनटुना कर घण्टी हमको
हालात से अवगत कराई है
कितने हैं हालात के मारे
डॉक्टर,नर्स,सफाईकर्मी
दूसरों के लिए नहीं देखते
अपने घर के बच्चे बेरहमी
कहीं पूरे पेट से डॉक्टर
फिर भी सेवा करती हैं
अपने बीबी की लाश ढोते
डॉक्टर भी रोया करते हैं
चन्द पैसों में कोई बिका हो
सबको न हम तौल पाएँगे
जो ख़ुद मिट रहा हो दूसरों में
उनको न हम भूल पाएँगे
डॉक्टर कोई भगवान नहीं
है वह भी हिस्सा इंसान का
उसे भी दर्द होता ही होगा
जब बिछड़ता हाल अपनों का
किसी एक कि मानवता हो झूठी
सबकी सम्वेदनाएं मरती नहीं है
कोई रोता जार जार पर
सबकी गला खुलती नहीं है
एक कोई बिछड़ता तन से
फूट फूट रोता जग है
जो देखे दिन रात है मौत
वह सम्भलता कैसे ख़ुद है
अगर मानवीय मूल्यों की कहीं
होती है कालाबाजारी
दोषी बने हम भी सिस्टम के
ख़ुद पर भी कहीं होती लाचारी
पर्यावरण सुरक्षित रहता
ऑक्सीजन की कमी न होती
सबकी बीमार भावनाओं को
ऑक्सीजन की ज़रूरत न होती
सबने मिल प्रयास किया है
और मिलकर फ़िर करेंगे सभी
गूंजेंगे ठहाके गलियों में फिर
दोषी न होंगे हममे से कोई
एक मौका मिला जो जीवन
मिलकर हम इसे स्वीकारें
मिलजुल कर हम साथ रहें
जिएं और सबको जीने दें
★★★★
डॉ मधुबाला सिन्हा
मोतिहारी,चम्पारण