विनोद कुमार पाण्डेय
लगाए रहता था मैं आस,
डाकिया आएगा मेरे पास,
चिट्ठी लाएगा खास।
देखते रहता था मैं बाट,
ढूंढता था उसे कभी
निकट के हाट।
दौड़ कर जाता था
मैं उसके पास,
धड़कते दिल की पूरी करने आस।
नाचने लगता था मन मयूर,
खुशी होती थी भरपूर,
जब डाकिया लगाता था आवाज,
चिट्ठी आई है तेरी आज।
पढ़ कर प्रिये की बात,
स्वप्न में कटती थी रात।
खड़ी है मेरे पास,
संजोये मिलने की आस,
एकाएक आंखें थी खुल जाती,
पास में दिखती थी
उसकी पाती।
--विनोद कुमार पाण्डेय
शिक्षक (रा० हाई स्कूल लिब्बरहेड़ी, हरिद्वार)