श्रीकांत यादव
नियंत्रित वाणी और सधी भाषा,
भद्र जनों से सदा अपेक्षित हैं |
कर्कशता उत्तेजना कृत्रिम बनावट,
दुष्टों की भाषा में प्रचलित हैं ||
दुस्साहस की अपनी कहानी,
अज्ञानी विद्वानों से कहते हैं,
उनकी विजय गाथा नहीं यह,
खुद बुराई की स्वयं करते हैं ||
जातीय अहंकार और घृणा की,
पूरे दुनियां मे बोलती बंद है |
समता मूलक सभ्य समाज में,
कानूनन दण्ड और प्रतिबंध है ||
मिष्ठ भाषा और तर्कसंगत विचार,
व्यक्तित्व के चाँद सितारे हैं |
कटुवाणी उत्तेजनात्मक स्वर के,
विचारे फिरते मारे मारे हैं||
प्रखर ज्ञान हमें स्थान दिलाते,
हमारा व्यक्तित्व उचित सम्मान |
खोखले ज्ञान से भांड न भरता,
स्व विवेक विना ना निदान ||
तेज चमकता माथे पर उनके,
जो प्रज्ञा रूपी सागर भर ली है |
वाणी उनकी वीणा सी बजती,
इंद्रियाँ जो बस में कर ली हैं ||
ज्ञान तपस्या अभ्यास उपासना,
विज्ञान है माला जप तप की |
गणित भाषा सामाजिक आराधना,
ये विवेक बुध्दि हैं आतप की ||
तर्कशक्ति बौध्दिक विकास का,
अवलंब बडा आवश्यक है |
विना ज्ञान तत्कालीन समाज के,
यह तो भूल चूक अभावक है ||
प्रसन्नचित्त मन क्रोध पर काबू,
तनाव नियंत्रण जिसने जाना |
समय उपयोग इसका नियंत्रण,
कर सफल हुआ जग ने माना ||
क्षमा दया करुणा ममता,
बौध्दिक बल से जिसने साधा।
यदुवंशी जग में उसकी तूती बोलती,
रोक न सकती कोई बाधा।।
श्रीकांत यादव
(प्रवक्ता हिंदी)
आर सी-326, दीपक विहार
खोड़ा, गाजियाबाद
उ०प्र०!