अलविदा जिंदगी को कह दूँ कैसे
तेरे बगैर क्या हो गया हूँ,
रूह से बिछुड़ा जिस्म हो जैसे,,
हर सांस जाल बिछा देती है,
जकडा हुआ पंख फडफडाऊं कैसे,,
हर सांस गर्म ले रहा है सूर्य,
मुझ से ज्यादा जला हो सकता है कैसे,,
मुखबिर बन बैठी है रूह जिस्म में,
अलविदा जिंदगी को कह दूँ कैसे,, ,,
घुटे बन्धन तोडने ही पडेंगे
दूरी जिस्म की
दूरी मन की
जब हो तो पूरी हों
वर्ना
मिलन की आस बनी रहती है
दूरियाँ ऐसी हों
आंख देखे तो पहचाने नहीं
कान सुनें तो चौंके नहीं
स्मृतियों के आईने
टूट जाएँ तो बेहतर
ख्यालों से ओझल
सपनों से दूर
घुटे बन्धन तोडने ही पडेंगे
घुटी सांसें
जिस्म रूह को सुकून नहीं देती
या बन्धन तोड़ दो
या बन्धन में बन्ध जाओ...
सुशील कुमार भोला
जम्मू