प्रकृति का
सौन्दर्य
नदी,वृक्ष,पर्वत।
खत्म न हो कभी यह
इनका अस्तित्व
कुछ ऐसा करें हम
इनके लिए प्रयत्न
वर्षा जल का संरक्षण,
वृक्षों का करें रक्षण
कुछ ऐसा ही हो
इनके लिए यत्न।
कल-कल करती
बह उठे फिर-
गंगा की निर्मल धार
धरा पर हो फिर-
शीतलता अपार
बहती हवाओं में
हो मधुरम आभाष
उगे धरा पर जब
हरी-हरी घास
बाढ़ का न हो
कभी प्रकोप
खुशियों से भरा रहे
वसुधा की कोख
लहलहाती फसलें
धरती का करें शृंगार
हलधर के घर फिर-
भरा हो धन-धान्य
प्रकृति के किसी भी रूप का
करो न अब दोहन
वृक्ष लगाओ! नदी बचाओ!
सर्वत्र यही नारा फैलाओ!
आओ सभी मिलकर
दें योगदान!
प्रकृति हित करें
कुछ समय दान
कुछ श्रम दान!
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