"जिंदगी की साँझ बेला
गीत प्रणय के गाएँगे
आ गया पतझड़ भले
उम्मीद-दीप जलाएँगे
आएँगी खुशियाँ दिवस
आस मन पनपाएँगे
दो जहाँ की ताकतों से
लड़कर तो दिखलायेंगे
हड्डियाँ बूढ़ी भले हो
जीवंतता अपनाएंगे
गीत मिलन के गाएँगे
प्यार की पेंग बढ़ाएंगे
दो जहाँ की खुशियाँ मिले
अवकाश पर न जाएँगे
मिलकर अपनों के सँग
जनमदिवस मनाएंगे
हो सौ जनम ऐसे हीं तो
हँस कर हम बिताएँगे
भूले से भी कहें बूढे हुए
वह दिन कभी न लाएँगे
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डॉ मधुबाला सिन्हा
मोतिहारी,चम्पारण