ग़ज़ल

सुभाषिनी जोशी 'सुलभ'

बहुत हो चुका अब हालात बदलने की बात कर। 

स्वप्न आशा के हर नयन में पलने की बात कर। 

गले, फेफड़े से बीमारी आँखों तक आ गई,

और क्या होगा प्रभु अब हल निकलने की बात कर।


कहाँ पर गया तेरा तरस मेरे मालिके जहां, 

स्वस्थ कर हर इन्सां को अमन फलने की बात कर। 


है धुकधुकी में जी रहा यहाँ हर एक आदमी, 

अब तो ऐ रहम दिल सूरत संभलने की बात कर।


कालाबाजारी की वशियत भारी है दया पर,

कर के नेकी ऐ रहमान भूलने की बात कर।


मोहताज है इन्सां आज तेरी रहम के लिए, 

ऐ रहीम तू बाग में फूल खिलने की बात कर।

 

तड़पती यहाँ रूहें हैं, यतीम हो गये बच्चे, 

परवरदिगार अब तो सुकून मिलने की बात कर। 


सुभाषिनी जोशी 'सुलभ'

इन्दौर मध्यप्रदेश

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