क्या मातृत्व नारी के लिए चुनौती है


वीरेन्द्र बहादुर सिंह 

मातृत्व यानी एक सुखद, संपूर्ण, संवेदनशील और सर्जनात्मकता की चरमसीमा की अनुभूति, किसी भी महिला के जीवन को एक नया अर्थ देता है। जब महिला के पेट में गर्भ का बीज अंकुरित होता है तो उसके हृदय में जीवनपर्यंत चलने वाली बसंत की हरीहरी कलियां हिलोरे लेने लगती हैं।शुष्क, रूखापन सब गायब हो जाता है और अद्भुत-कोमल भावना पैदा हो कर तनमन में आकार लेने लगती है, जिसका वर्णन मातृत्व का अनुभव मातृत्व प्राप्त कर चुकी महिला भी अपने मुंह से नहीं कर सकती।

स्त्री-पुरुष के शारीरिक मिलन से आकार पाने वाला मातृत्व सृष्टि को अविरत जीवंत रखता है। मनुष्य ही नहीं, सृष्टि हर जीव के अस्तित्व की श्रंखला मातृत्व पर ही आधारित है। जो मां के अस्तित्व, व्यक्तित्व तथा स्त्रीत्व को पूर्णता प्रदान करता है। कोई भी महिला जब मां बनती है, तब एक तरह से उसका दूसरा जन्म होता है। शरीर से शरीर की रचना करने का विरल सौभाग्य कुदरत ने मात्र स्त्री को ही दिया है। जिससे मां को भगवान का दर्जा दिया गया है।

महिला के शरीर में मातृत्व का बीज अंकुरित होते ही उसका रूप, उसका शरीर बालकमय हो जाता है। गर्भवती महिला के हृदय में गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए भाव मात्र भावना ही नहीं, आध्यात्मिकता की भी चरमसीमा है। पहले 3 महीने में होने वाली शारीरिक तकलीफें और प्रसव पीड़ा का डर भी उनकी खुशी को कम नहीं करता। मातृत्व प्राप्ति का आनंद दुनिया का सर्वश्रेष्ठ आनंद है। महिला के पेट में खिल रही जिंदगी की धड़कन और मां की धड़कन इस तरह एकाकार हो जाती है कि यह एकत्व देवत्व को साकार पर देता है।

मां बनते ही महिला का तन-मन बदल जाता है। नवजात शिशु को पहली बार हाथ में लेते हुए कभी आपने मां के चेहरे को देखा है? उस तरह का उत्कृष्ट भाव कभी किसी के चेहरे पर देखने को नहीं मिलता। बच्चे के मुसकराते होठ, मां की ओर विश्वास से ताकती 2 छोटी-छोटी आंखें, प्रेम से उछलते हाथपैर, रुई जैसी मुलायम त्वचा, उसे छू कर, उसे देख कर हृदय में धन्यता-पूर्णता और दुलार की अविस्मरणीय अनुभूति मां प्राप्त करती है। उसके सामने चक्रवर्ती का ऐश्वर्य सुख भी बेकार है।

बच्चे के साथ-साथ मां भी बड़ी होती है। एक बच्चे को गढ़ने, पालनेपोषने तक उसे जीवन के विविध रंगों से परिचित कराती है। बच्चा रोता है तो मां का दिल भी रोता है। चोट बच्चे को लगती है तो उसकी पीड़ा मां को होती है। पालने में सोने वाले बच्चे से ले कर प्रौढ़त्व की कगार पर पहुंचे संतानों के दिल की भावना समझने की सामर्थ्य केवल मां में होती है। बिना शब्दों का संवाद यानी मां और बच्चे का संवाद। अपने शरीर के अंश को एक आदमी के रूप में बड़ा होते देख मां की आंखें हृदय में कितना कुछ समा लेती हैं। मां एक मनुष्य के अंदर और बाह्य सर्जन की भूमिका अदा करती है। किसी भी संयोग में हारती नहीं है। मातृत्व का बल पूरी दुनिया के सामने जंग छेड़ने में सक्षम है। मातृत्व वह सूक्ष्म ताकत है जो बच्चे के लिए असंभव को संभव बनाने की चुनौती को स्वीकार करती है। मातृत्व स्त्री के व्यक्तित्व को निखारता है, गढ़ता है, भावनाओं को अनेक रंगों में रंगता है। भावनाओं में भरता है, जीवन के अनेक दरवाजों से गुजरने की ताकत देता है। वह झुकना भी सिखाता है और झुकाना भी। मातृत्व स्त्री को लड़ना भी सिखाता है और शांत रहना भी। मां के हृदय में मनोबल लोहे की तरह मजबूत तो मोम की तरह मुलायम होता है। मातृत्व प्राप्त कर चुकी महिला जीवन के उत्सव को बखूबी मना सकती है। करुणा, ममता, निस्वार्थ भाव और प्रेम के दिव्य तत्व की अनुभूति मातृत्व के साथ जुड़ी है। मातृत्व भाव ही सृष्टि की रचना का स्थाई भाव है। इसीलिए कहा जाता है कि मातृत्व के बिना स्त्रीत्व अधूरा है।

पर आधुनिक महिलाओं के सुख का आकाश मातृत्व के क्षितिज से कैद नहीं है। शिक्षा, कैरियर, पद, प्रतिष्ठा, पैसा और उससे मिलने वाले शारीरिक-मानसिक सुखों का आनंद इनके लिए मातृत्व के आनंद से अधिक है। मातृत्व इनके लिए मौज नहीं, बोझ है। इसलिए आज अनेक महिलाएं मां नहीं बनना चाहतीं अथवा वे बड़ी उम्र में मां बनना चाहती हैं। और दो बच्चे तो किसी आधुनिक महिला के लिए सोचना भी मुश्किल है। इसका पहला कारण तो यह है कि अब पहले की तरह जिस तरह 2-4 बच्चे बड़े हो जाते थे, अब संभव नहीं है। एक बच्चे को पालने के लिए अब काफी समय-शक्ति, पैसा और धीरज चाहिए। ये चारों चीजें बहुत कम महिलाओं के पास होती हैं। 

दूसरे आधुनिक महिलाओं को स्वतंत्रता पसंद है। बच्चे के लिए वे एक छोटे से दायरे में कैद नहीं होना चाहतीं। बच्चा यानी अविरत जिम्मेदारी। महत्वाकांक्षी महिलाओं के पास इसके लिए समय नहीं है। वह खुद को फैलाना चाहती हैं। हाई-प्रोफाइल जाब, खुद से अधिक प्रेम, मनपसंद क्षेत्र में सफलता, महत्वाकांक्षा और आजादी इनके व्यक्तित्व के नए रूप हैं। मातृत्व के लिए स्त्रीत्व और व्यक्तित्व को दांव पर नहीं लगाना चाहतीं। वे मां बन कर सिमट कर रहने के बजाय स्त्री और एक व्यक्ति के रूप में खुल कर जीना चाहती हैं। एक बच्चे को पढ़ाने की अपेक्षा उन्हें महिला के रूप में विकसित होना है, निखरना है, पहचान बनानी है। इन्हें एक ग्रुप को ट्रेनिंग देने में मजा आता है। बच्चे के बारे में निर्णय लेने के बजाय अपने काम की पहचान बने, इसका निर्णय लेना अधिक पसंद है। शिक्षा द्वारा कैरियर और कैरियर द्वारा आत्मनिर्भरता और स्वतंत्रता का जो सुख मिला है, वे बच्चे के लिए खोना नहीं चाहतीं। बच्चे की जिम्मेदारी की वजह से विकास में अवरोध आए, यह इन्हें पसंद नहीं है। आज महिलाएं किसी काम में पूरा समय देंगी, तभी सफल होंगी और इसके लिए सब कुछ भूल कर काम करना पड़ेगा। भारतीय परिवारों में महिलाएं चाह लें तो बच्चों की जिम्मेदारी के साथ पूरा समय दे सकती हैं? आज बच्चों की 90 प्रतिशत जिम्मेदारी हमारे यहां महिलाओं पर ही है। बच्चे के कारण तमाम महिलाओं को अपना काम छोड़ना पड़ता है। क्योंकि अगर काम की वजह से वे बच्चे पर ध्यान नहीं दे पातीं तो समाज और परिवार उन्हें अपराधी के कठघरे में खड़ा कर देता है। मां बनने के बाद अनेक स्त्रियों को अपने शौक, काम, आत्मनिर्भरता और स्वतंत्रता को तिलांजलि देनी पड॔ती है, जो अनेक महिलाओं को स्वीकार्य नहीं है। इससे मैट्रो सिटीज में डबल इनकम का ट्रेंड है। मां बनने के लिए बच्चे को जन्म देना जरूरी नहीं, यह मानसिकता भी आज महिलाओं में मजबूत हुई है। जीवन में जब कभी बच्चे की जरूरत महसूस हो, तो बच्चा एडोप्ट कर लेंगी। जीवन में बच्चे को पालनेपोसने के अलावा भी अनेक महत्वपूर्ण काम हैं, आनंद के स्रोत हैं, विकास के पर्याय हैं। वह पूरी जिंदगी मातृत्व की जंजीर में क्यों बंधी रहें। मातृत्व जितना देता है, उतना छीन भी लेता है। यह आधुनिक महिलाएं समझती है, इसलिए मां बनने के बारे में सौ बार सोचती हैं। प्रेगनेंसी आज हर महिला के लिए गुड न्यूज नहीं है। बिना बच्चे के भी खुशहाल जीबव जीने वाली अनेक महिलाएं हैं।

लेकिन ऐसी महिलाओं की संख्या बहुत कम है। पढ़ीलिखी या अनपढ़, गरीब या धनी, गृहिणी या कामकाजी महिला अगर मां नहीं बन पाती तो बहुत पैसा खर्च कर के मां बनने की कोशिश करती है। मातृत्व पर व्यक्तित्व या स्त्रीत्व भले हावी हो, पर ज्यादातर महिलाएं इन दोनों के बीच बैलेंस बना कर सुपरवुमन बन कर जीवन जीती हैं और बच्चे को शिक्षा और संस्कार द्वारा सफल और अच्छा व्यक्ति बनाती हैं। ऐसी महिलाओं को मदर्स डे की शुभकामनाएं


 वीरेन्द्र बहादुर सिंह 

जेड-436ए, सेक्टर 12

नोएडा-201301 (उ0प्र0)

virendra4mk@gmail.com

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