अन्तर्मन में द्वंद छिड़ा है
अन्तर्मन में द्वंद छिड़ा है मन वेदना किसे सुनाऊ आज।
कृष्ण नही हैं आने वाले सुलह किससे कराऊँ आज।।
शांतिदूत बना किसको भेजूं इस दुर्योधन के कट्टर विचार।
राज पाट की बात न पूछो इनके तो कलुषित विचार।।
युद्ध भूमि मध्य रथ खड़ा है गांडीव नीचे कर पार्थ खड़ा।
सकुनी के कुटिल मुस्कान संग पूरा रणभूमि डूबा पड़ा।।
गंगा पुत्र भी विवश खड़े इस द्वंद युद्ध का होने शिकार।
आओ अर्जुन वेध डालो तुम सामने खड़ा तेरा शिकार।।
द्वंद अब धर्म और पुत्र में विवश द्रोण अब रथ सवार।
पुत्र मोह के इस पचड़े में आओ कर दो शर पर वार।।
अंतर्मन के द्वंद युद्ध का केवल निकले दो परिणाम।
हावी अगर स्वार्थ सिद्ध तो निकलेगा बस गलत परिणाम।
इस द्वंद युद्ध के टकराव में जीत अगर हो मन का साथ।
बैर भाव और वैमनस्य से झुटकारा मिल जायेगा आप।।
इक बार फिर विजय पताका फहरेगा फिर अपने आप।
उस लीलाधर के अवतार की जरूरत खत्म हो जाएगी अपने आप।।
किश्ती फँसी हैं बीच भवर में
किश्ती फँसी है भवसागर बीच नाविक विचलित मत होना ।
अंधकार की आंधी का निश्चय ही है खत्म होना ll
अविचल और अडिग मन से तुम पतवार संभाले रखना ।
आज नहीं तो कल तक ही तुमको है पार जरूर होना ll
लहर एक छल बना आया तुम्हें केवल पथ भ्रमित करने को ।
इस साजिश को तोड़ निकल तुम सही राह पर चलने को ll
कमजोर पड़े जो तेरे निश्चय तो पथ भ्रमित हो जाओगे ।
लहरों के इस बीच भंवर में फंस कर ही रह जाओगे ll
प्रशस्त किनारा राह में बैठा लहर थपेड़ा खा कर रोज ।
तुम्हारे पास तो पतवार सहारा उसके पास नहीं कुछ और ll
उलझ सुलझ कर पार लगाना अपने सहित नौका को तुम ।
अपने आने वाली पीढ़ी में नया विश्वास जगाना तुम ll
बेशक नौका जीर्ण तुम्हारे पतवार में भी कई छेद ।
सूझबूझ और हिम्मत कर सीना तुमको सभी छेद ll
भवसागर की अथाह गहराई इससे तेरा क्या वास्ता ।
नौका तो सतह तैर रहा तुमको तो मंजिल से वास्ता ll
कष्ट बहुत है इस जीवन में भवसागर की गहराई अनंत ।
नेक और सद्कर्मो का पतवार बना पहुंचना तुम को अनंत ll
लहर हिचकोले खाकर बनते हैं एक कुशल खेवनहार ।
जीवन के हिचकोले से जूझ कर करना है भवसागर पार ll
हम मानव की जीवन नैया फंसी हुई भवसागर बीच ।
लहरों के इस उथल-पुथल में जीवन फंसी भवसागर बीच ll
लहरों का तो एक काम बस जीवन में बाधा लाना ।
हम मानव का धर्म बस लहरों पर ही चलते जाना ll
लहर पार कर हम जाए जाएंगे सागर के उस पार भी ।
अपने आने वाली नस्लों में छोड़ जाएंगे मिसाल भी ll
बेशक कल हम हो ना हो कुशल नाविक में मेरा नाम ।
देश और समाज में छोड़कर जाना अपने केवल सुलझे काम ll
श्री कमलेश झा
राजधानी दिल्ली