कमलेश मुद्ग्ल
भाई, सही पैसे लगा लो। इतने महँगे नारियल थोड़े ही होते हैं? उसने हैरान होते हुए कहा। अभी दो दिन पहले तो सतर का एक देकर गए थे। आज एकदम सौ रुपए का एक नारियल। सुबह सुबह का समय, बहस करना भी उसको अच्छा नहीं लग रहा था। नीरू, के सामने पूरा बजट ही गड़बड़ा गया। इतनी सी देर में जाने क्या क्या सोच गई। बहन जी, तीन सौ रुपए दे दो। जल्दी करो, मुझे अगली सोसायटी में भी जाना है। उसके बोलने के अंदाज से समझ गई कि, आज तो उसे तीन सौ देने ही पड़ेंगे। फिर भी एक बार धीमी आवाज में बोली___ देख लो भाई, रोज ही तीन नारियल लेती हूँ। अब नारियल बेचने वाले ने और ऊँची आवाज़ में कहा__ मुझ पर अ ह सान करती हो क्या? अपनी सेहत के लिए लेती हो। अब वह चुप हो गई और कोई पड़ोसी सुन न ले, जल्दी से रुपए दे दिए। घर के अंदर आकर, एक कोने में नारियल रख वह सोच रही थी, कुछ समय पहले, यही भाई, उस से कम पैसों में ले लो। कह कर तीन नारियल दे जाता था। बहनजी, आप की बोहनी बड़ी अच्छी होती है। तेज बोलता था, जिस से एक दो पड़ोसी, भी उस से, नारियल ले लेते थे। समय समय की बात है। हालात ही एसे हो गए हैं। एक एक पैसा देख कर खर्च करना पड़ रहा है। कोरोना ने सब को बहुत कुछ सीखा दिया है। उसने एक ठंडी साँस भरी और रसोई में चली गई।