आकर विपदा जीवन में,
कीमत सुख की समझाए।
धैर्य धरे न जीवन में जो,
समय बीत बहुत पछताए।
तपकर कष्टों की अग्नि में,
जीवन कुंदन बन जाए।
मित्र-शत्रु, सत्य-असत्य,
यह ज्ञान सुलभ कराए।
घोल हलाहल कंठ में,
सुधा का स्वाद बढ़ाए।
जो न देखा हो पतझड़।
बसंत चित्त ना भाए।
जो भोगे तम रजनी का,
नव प्रभात उसे लुभाए।
केवल सुख का सेवन ही,
सुख का आनन्द मिटाए।
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दीप्ति खुराना
शिक्षिका, मुरादाबाद (उ.प्र.)