निवेदिता रॉय
मेरी रूह में बसा है तुम्हारा हर शब्द, पापा
वो क़लम जो तुम ने पकड़ायी
काग़ज़ पर उड़ेल रही हूँ वो स्याही
तुम्हारी सिखाई हर बात बहुत कमाल है
मेरी ज़िंदगी का वो कलाम है
जब इस दुनिया की गर्म हवा भरमाती
तुम बादल बन कर ढक लेते ।
खिजायें आती ,शाख़ से पत्ते गिरते
सूखी पत्तियाँ रास्ते पर बिछ जाती,
सूनी बगिया बहार का इंतज़ार करती
तुम ही एक इकलौते दरख़्त थे
जिसपर पतझड़ का फ़र्क़ नहीं पड़ता
जो हमेशा ख़ुशियाँ बिखेरता
आज मैं तुम्हें बादल के झुंड में तलाशती हूँ
तुम शायद ऊपर से चुपचाप झांकते हो
तुम याद बहुत आते हो
सर पर हाथ महसूस होता है अक्सर
कोशिश है तुम्हें हमेशा फ़ख़्र हो मुझ पर ।
निवेदिता रॉय (बहरीन)