नीलम राकेश
गांव के जमीदार ने आज मंदिर में एक यज्ञ का आयोजन किया था। वे भक्त इंसान थे । पुजारी जी को मान देने के लिए वे उन्हें उनके घर से लेकर मंदिर की ओर बढ़ रहे थे। तभी किसी के कराहने की आवाज से दोनों चौक गए और दोनों तेज चाल से आवाज की दिशा में बढ़ गए। खेत में कलुआ दर्द से तड़प रहा था।
"अरे इसे तो सांप ने काट लिया।" पैर के निशान की ओर देखते हुए जमीदार हमदर्दी से बोले।
जमीदार कुछ समझ पाते उससे पहले पुजारी जी अपने अंगोछे का सिरा फाड़ कर कलुआ के पैर में बांधने लगे ।
" अरे अरे इसकी जाति ……… आपका धर्म भ्रष्ट हो जाएगा पुजारी जी।" जमींदार ने याद दिलाया परंतु पुजारी जी पूरे मनोयोग से कलुआ के पैर से सांप का विष चूसकर निकालते रहे । अब तक गांव के और लोग भी आ गए थे । पुजारी जी खड़े होते हुए बोले, "इसे वैद्ध जी के पास ले जाओ । अब इसकी जान बन जाएगी और हां जजमान , आपकी जानकारी के लिए बता दूं किसी की जान बचाने से बड़ी कोई दूसरी पूजा नहीं होती।"
नीलम राकेश
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